रियासी में आतंकी हमले को लेकर मोदी सरकार पर जमकर बरसे पवन खेड़ा

नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में तीर्थयात्रियों को ले जा रही बस पर आतंकियों ने हमला कर दिया। इस आतंकी हमले में 10 लोगों की जान चली गई। रियासी में हुए आतंकी हमले पर सियासत गरमाई गई है। इसको लेकर कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी पर हमला बोला है। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने.

नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में तीर्थयात्रियों को ले जा रही बस पर आतंकियों ने हमला कर दिया। इस आतंकी हमले में 10 लोगों की जान चली गई। रियासी में हुए आतंकी हमले पर सियासत गरमाई गई है। इसको लेकर कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी पर हमला बोला है। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि एक तरफ एनडीए सरकार का शपथ ग्रहण कार्यक्रम चल रहा था, दूसरी ओर कश्मीर में निहत्थे तीर्थयात्रियों पर आतंकी हमला हो रहा था और तीसरी तरफ भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट का मैच चल रहा था। मैं पूछना चाहता हूं, क्या क्रिकेट और आतंकवाद साथ-साथ चल सकते हैं?

कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर वीडियो जारी करते हुए कहा कि कश्मीर में निहत्थे तीर्थयात्रियों पर आतंकी हमला हुआ, जिसमें लगभग 10 तीर्थयात्रियों की जान चली गई। हमें पिछले 10 साल से कहा जा रहा है कि कश्मीर में शांति आ गई। कहां है वो शांति, किसके लिए है वो शांति, जो बाहर से मजदूर वहां काम करने जाते हैं, उनके लिए शांति नहीं है। कश्मीरी पंडित नहीं मानते कि यहां पर शांति आ गई। स्थानीय नागरिकों से पूछो तो वो भी नहीं मानते कि कश्मीर में शांति आ गई है। सुरक्षाबलों, पर्यटकों के लिए शांति नहीं है।

खेड़ा ने कहा, 10 दिन पहले राजस्थान से कश्मीर घूमने आए दो पर्यटकों पर हमला हुआ था। सिर्फ शांति के बारे में भाषण दे देना और अपनी पीठ थपथपाना कि मैं कश्मीर में शांति ले आया, उससे शांति नहीं आती।

पवन खेड़ा ने आगे कहा कि एक तरफ शपथ ग्रहण समारोह चल रहा था, दूसरी ओर आतंकी हमला हो रहा था और तीसरी तरफ क्रिकेट का मैच चल रहा था। क्या क्रिकेट और आतंकवाद साथ चल सकता है, हम ये सरकार से जानना चाहते है। सिर्फ लफ़्फ़ाज़ी करने से शांति नहीं आती। क्या ठोस कदम उठाए जा रहे हैं, इसका जवाब देश मांग रहा है, कश्मीरी पंडित मांग रहे हैं। स्थानीय नागरिक, सुरक्षा बल और हमारे तीर्थयात्री मांग रहे हैं।

इसके साथ ही उन्होंने एक्स पर लिखा, ’हमें रौब से कहा जाता है कि कश्मीर में शांति आ गई है। हम पूछना चाहते हैं कि क्या शांति सिर्फ़ राजनीतिक लफ़्फ़ाज़ी से आती है? दिहाड़ी मजदूरों के लिए शांति नहीं है, कश्मीरी पंडितों के लिए शांति नहीं है, स्थानीय नागरिकों के लिए शांति नहीं है, पर्यटकों के लिए शांति नहीं है, तीर्थयात्रियों के लिए शांति नहीं है, सुरक्षाबलों के लिए शांति नहीं है।’

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