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कुल्लू दशहरा उत्सव में घाटी के सभी देवी-देवता होते है सम्मिलित, लेकिन एक ऐसी देवी हैं जो पहाड़ी के ऊपर अपने गांव से ही इस देव मिलन में सम्मिलित होती हैं

कुल्लू: देवी-देवताओं का महाकुंभ कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश के कुल्लू दशहरा उत्सव में घाटी के सभी देवी-देवता सम्मिलित होते हैं। लेकिन, कुल्लू की एक ऐसी देवी भी हैं, जो पहाड़ी के ऊपर अपने गांव से ही इस देव मिलन में सम्मिलित होती हैं। इन देवी का रथ कुल्लू के ढालपुर मैदान में नहीं आता.

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कुल्लू: देवी-देवताओं का महाकुंभ कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश के कुल्लू दशहरा उत्सव में घाटी के सभी देवी-देवता सम्मिलित होते हैं। लेकिन, कुल्लू की एक ऐसी देवी भी हैं, जो पहाड़ी के ऊपर अपने गांव से ही इस देव मिलन में सम्मिलित होती हैं। इन देवी का रथ कुल्लू के ढालपुर मैदान में नहीं आता है और इसके पीछे की मान्यता बेहद अनोखी है। भगवान रघुनाथ के कारदार और राजपरिवार के बड़े पुत्र दानवेन्द्र सिंह ने बताया कि एक बार उनके पूर्वजों ने देवी भेखली को ज़बरदस्ती दशहरा के लिए ढालपुर लाने की कोशिश की थी। तब राजा के लोग उन्हें सिर्फ़ इन चरणों के निशान तक ही ला पाए थे। ऐसा माना जाता है कि तब माता के कोप से लोहे के ओले बरसने लगे थे. देवी भेखली कभी अपनी फाटी से यानी अपने क्षेत्र के गांव से बाहर नहीं जाती हैं।

उस घटना के बाद कभी माता का रथ ढालपुर लाने की कोशिश नहीं की गई. इसलिए हर दशहरा पर माता चरण चिह्न तक आती हैं। दानवेन्द्र सिंह ने बताया कि मां भेखली धूप के समय बाहर नहीं आती हैं। ऐसी मान्यता है कि देवी का एक बार सूर्यदेव से युद्ध हुआ है, जिसके बाद उनकी टांग पर चोट आई थी. इसी के कारण देवी का रथ भी लंगड़ाकर चलता है। दानवेंद्र सिंह ने बताया कि देवी का रथ दशहरा में सम्मिलित नहीं होता है। लेकिन, यहां दशहरा में होने वाले महाल्ला दरबार में वह भी अपनी हाजिरी भगवान रघुनाथ के समक्ष लगाती हैं. माता के दरबार से उनके गुरु और पुजारी द्वारा कटोरी में केसर लाया जाता है, यानी माता के दरबार से भगवान रघुनाथ को फूल भेजे जाते हैं। इसी कटोरी के रूप में उनकी हाजिरी भरी जाती है. इस कटोरी को महल्ला दरबार खत्म होने के बाद देवी सीता के घाघरा चोली वस्त्र पहनकर वापिस भेजा जाता है।

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