Mahashivratri 2024: कल मनाई जा रही है महाशिवरात्रि, जानिए महत्व, मंत्र और भगवान शिव के 10 प्रतीकों का अर्थ

हिंदू धर्म में हर व्रत-त्योहार का अपना एक विशेष महत्व माना जाता है। इसी तरह से महाशिवरात्रि को भी बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। महाशिवरात्रि हे वर्ष फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव जी के भगत व्रत रखते है और भगवान शिव जी की पूजा अर्चना.

हिंदू धर्म में हर व्रत-त्योहार का अपना एक विशेष महत्व माना जाता है। इसी तरह से महाशिवरात्रि को भी बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। महाशिवरात्रि हे वर्ष फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव जी के भगत व्रत रखते है और भगवान शिव जी की पूजा अर्चना करते है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इस वर्ष महाशिवरात्रि 08 मार्च को मनाई जा रही है। आइए जानते है इससे जुड़ी कुछ खास बातें:

महाशिवरात्रि पर करें इन मंत्रों का जाप:

ॐ नमः शिवाय
शिवजी का यह मंत्र बहुत चमत्कारी माना जाता है। महाशिवरात्रि के दिन इस मंत्र का जाप 108 बार करें। यह मंत्र व्यक्ति के शरीर और दिमाग को शांत करता है और महादेव भी उसपर अपनी कृपा बनाए रखते हैं।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥ यह महामृत्युंजय जाप है। इस मंत्र को सबसे ज्यादा प्रभावशाली माना जाता है। इसका अर्थ है- हम त्रिनेत्र को पूजते हैं, जो सुगंधित हैं और हमारा पोषण करते हैं। जैसे फल शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं।

ॐ नमो भगवते रुद्राय नमः
शिवजी के इस मंत्र को रुद्र मंत्र कहा जाता है। किसी मनोकामना के लिए महाशिवरात्रि पर इसका जाप अवश्य करें। यह मंत्र शिव जी तक आपकी सभी मनोकामनाएं पहुंचाता है।

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्!

महाशिवरात्रि पर इस मंत्र का जाप अवश्य करें। यह शिव गायत्री मंत्र है, जिसे सर्वशक्तिशाली माना जाता है। इस मंत्र से व्यक्ति को सुख और शांति की प्राप्ति होती है।

शिव के 10 प्रतीक
चंद्रमा: ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक ग्रह कहा गया है। भगवान शिव के शीश पर अर्धचंद्रमा सुशोभित है। शिवजी ने अर्धचंद्र को आभूषण की तरह अपनी जटा में धारण किया है। इसलिए शिवजी को सोम और चंद्रशेखर भी कहा जाता है। चंद्रमा आभा, प्रज्वल, धवल स्थितियों को प्रकाशित करता है, जिससे मन में अच्छे विचार उत्पन्न होते हैं। भगवान शिव के सिर पर विराजमान अर्धचंद्रमा को मन की स्थिरता और आदि से अनंत का प्रतीक माना जाता है।

सर्प माला: भगवान शिव फूल, रत्न या किसी धातु की माला नहीं बल्कि सर्प की माला पहनते हैं। भगवान शिव के गले में वासुकी नाग है। शिव के गले में नाग तीन बार लिपटा हुआ है जोकि भूत, वर्तमान और भविष्य का सूचक माना जाता है। सांप तमोगुणी प्रवृतियों का प्रतीक है और शिव के गले में होने के कारण यह संदेश मिलता है कि तमोगुणी प्रवृतियां शिव के अधीन या वश में हैं।

तीसरी आंख: शिवजी के तीन नेत्र हैं. तीसरी आंख शिव के क्रोध के समय खुलती है और तीसरी आंख खुलते ही प्रलय आ जाता है। वहीं सामान्य परिस्थितियों में भी शिवजी का तीसरा आंख विवेक के रूप में जागृत रहता है। इसलिए शिवजी की तीसरी आंख को ज्ञान और सर्व-भूत का प्रतीक माना गया है। शिवजी जी की तीसरी आंख ऐसी दृष्टि का बोध कराती है, जोकि 5 इंद्रियों से परे है। इसलिए शिव को त्र्यम्बक कहा जाता है।

त्रिशूल: अस्त्र के रूप में शिव के हाथ में हमेशा त्रिशूल रहता है। माना जाता है कि त्रिशूल दैविक, दैहिक और भोतिक तापों का नाश करने का मारक शस्त्र है। भगवान शिव के त्रिशूल में राजसी, सात्विक और तामसी तीनों गुण समाहित हैं। इसके साथ ही त्रिशूल ज्ञान, इच्छा और पूर्णता का प्रतीक है।

डमरू: डमरू के बजते ही शिव का तांडव शुरू हो जाता है और शिव के तांडव से विध्वंस होने लगाता है। शिवजी के डमरू का रहस्य यह है कि इसके ब्रह्मांडीय ध्वनि से ‘नाद’ उत्पन्न होती है, जिसे ब्रह्मा का रूप माना जाता है। क्योंकि जब विध्वंस होता है तब ब्रह्मा निर्माण करते हैं। डमरू को संसार का पहला वाद्य यंत्र माना जाता है। शिव के हाथों में डमरू सृष्टि के आरंभ और ब्रह्म नाद का सूचक है।

रुद्राक्ष: रुद्राक्ष को लेकर ऐसी मान्यता है कि इसकी उत्पत्ति शिव के आंसुओं से हुई है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब शिवजी ने गहरे ध्यान के बाद अपनी आंखें खोली तो उनकी आंखों से आंसू की बूंद पृथ्वी पर गिरी, जिससे रुद्राक्ष वृक्ष की उत्पत्ति हुई। शिवजी अपने गले और हाथों में रुद्राक्ष पहनते हैं जो शुद्धता और सात्विकता का प्रतीक है।

गंगा: शिवजी की जटा में गंगा है। पौराणिक कथा के अनुसार गंगा का स्त्रोत शिव है और शिवजी की जटाओं के माध्यम से ही मां गंगा का आगमन स्वर्ग से धरती पर हुआ। शिव द्वारा जटा में गंगा को धारण करना आध्यात्म और पवित्रता को दर्शाता है।

बाघंबर वस्त्र: बाघ को शक्ति, ऊर्जा और सत्ता का प्रतीक माना जाता है। शिवजी वस्त्र के रूप में बाघ की खाल धारण करते हैं, जोकि यह दर्शाता है कि वे सभी शक्तियों से ऊपर हैं। साथ ही इसे निडरता और दृढ़ता का भी प्रतीक माना जाता है।

नंदी: शिवजी के वाहन नंदी वृषभ यानी बैल हैं। इसलिए सभी शिव मंदिर के बाहर नंदी जरूर होते हैं। धर्म रूपी नंदी के चारों पैर चार पुरुषार्थों धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को इंगित करते हैं।

भस्म: भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं, जो इस बात का संदेश है कि संसार नश्वर है और हर वस्तु को एक दिन खाक में मिल जाना है। लेकिन जब मिटेगा तब सृजन भी जरूर होगा। भस्म शिव के विध्वंस का प्रतीक है, जिसके बाद ब्रह्मा जी पुनर्निमाण करते हैं।

संकट मुक्त होने के लिए करें ये सरल उपाय:

शिवरात्रि के दिन 21 बेलपत्र लेकर सभी पर चंदन से ‘ॐ नमः शिवाय’ लिख कर शिवलिंग पर अपनी इच्छा बोलते हुए चढ़ा दें।
पांच मुखी रुद्राक्ष को पानी से साफ करके सुखा लें। सुखने के बाद इसे अपने बाएं हाथ में रखें और दाएं हाथ से बंद करके अपनी सारी इच्छाएं बोल दें। साथ ही मन में सोचें कि यह मेरा एक जादुई रुद्राक्ष है जो मेरी सारी इच्छाओं को पूरा करेगा। इसके बाद इसे कहीं सुरक्षित जगह पर रख दें और दिन में एक बार जरूर देखें।
एक काली मिर्च और सात काली तिल्ली के दाने हथेली में रखकर मन से कामना करें और शिवलिंग पर चढ़ा दें। ऐसा करने से आपकी मनोकामना जरूर पूरी होगी।
महाशिवरात्रि पर इस तरह करें शिवलिंग की पूजा

शास्त्र कहते हैं कि शिवलिंग के स्पर्श मात्र से संकट दूर हो जाता है ऐसे में 8 मार्च को 3 महादोषों से मुक्ति पाने का बहुत खास अवसर है, इस दिन 3 तरह के खास पत्तों से शिव पूजा करें। शिवलिंग पर एक लौटा जल चढ़ाने से शंकर जी प्रसन्न हो जाते हैं, लेकिन महाशिवरात्रि पर विधि अनुसार शिव को बेलपत्र चढ़ाया जाए तो पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। बेलपत्र बहुत प्रभावशाली माना गया है।

महाशिवरात्रि पर शिव को बेलपत्र उलटा करके अर्पित करें। इसमें तीन पत्तियां होनी चाहिए, जो कहीं से कटी-फटी न हो। बेलपत्र कभी खराब नहीं होता, इसे धोकर फिर से शिव को चढ़ा सकते हैं। शनि दोष से छुटकारा पाने के लिए महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर शमी चढ़ाना लाभकारी माना गया है। शमी पत्र में शनि वास करते हैं और शिव शनि के गुरु हैं, ऐसे में शमी पत्तों को शिवलिंग पर चढ़ाने से शनि साधक को परेशान नहीं करते।

महाशिवरात्रि पर शिव को भागं और धूतरा या उसके पत्ते चढ़ाएं। भांग और धतूरे ने शिव जी द्वारा पीए हलाहल विष का असर खत्म किया था, इसलिए ये दोनों उन्हें प्रिय है। धतूरे को राहु का कारक माना गया है, इसलिए भगवान शिव को धतूरा अर्पित करने से राहु से संबंधित दोष जैसे कालसर्प दोष दूर हो जाता है। मान्यता है कि दूर्वा भगवान गणेश और भोलेनाथ दोनों को अति प्रिय है। इसलिए महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ को दूर्वा जरूर चढ़ाएं. मान्यता है कि इससे आकाल मृत्यु का भय दूर होता है।

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