BRICS व्यवस्था का विस्तार आज के समय की मांगः भारतीय जानकार

दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में 15वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन जारी है। इसमें चीन, भारत, दक्षिण अफ्रीका आदि ब्रिक्स देशों के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री हिस्सा ले रहे हैं। ब्रिक्स व्यवस्था अपनी स्थापना के बाद लगभग डेढ़ दशक में व्यापक रूप ले चुकी है। अब उसका विस्तार हो रहा है, कई देश इससे जुड़ने और सदस्य बनने.

दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में 15वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन जारी है। इसमें चीन, भारत, दक्षिण अफ्रीका आदि ब्रिक्स देशों के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री हिस्सा ले रहे हैं। ब्रिक्स व्यवस्था अपनी स्थापना के बाद लगभग डेढ़ दशक में व्यापक रूप ले चुकी है। अब उसका विस्तार हो रहा है, कई देश इससे जुड़ने और सदस्य बनने के इच्छुक हैं। जो ब्रिक्स के भविष्य के लिए एक अच्छा संकेत है। इस बारे में सीएमजी संवाददाता अनिल पांडेय ने बात की इंडिया ग्लोबल के चाइना सेंटर के प्रमुख प्रसून शर्मा से।
ब्रिक्स के विस्तार को लेकर प्रसून का कहना है कि यह आज के दौर में एक सराहनीय और सकारात्मक पहल है। ब्रिक्स व्यवस्था का विस्तार होना चाहिए, अभी तक लगभग 23 देशों ने इसका सदस्य बनने के लिए औपचारिक तौर पर आवेदन किया है। इस बार जोहान्सबर्ग में हो रहे सम्मेलन में 67 देशों और संगठनों के नेता शिरकत कर रहे हैं। इससे पता चलता है कि ब्रिक्स का कितना महत्व है और वह आज के समय में कितना सार्थक हो गया है। बिक्स तंत्र की भूमिका और कार्यों को अन्य देशों की सराहना मिल रही है। इसके साथ ही वे देश चाहते हैं कि वे ब्रिक्स के साथ जुड़ें।
विश्व आर्थिक विकास में ब्रिक्स की भूमिका को लेकर प्रसून शर्मा कहते हैं कि अगर आप तथ्यों को देखें तो ब्रिक्स देशों की वैश्विक व्यापार में हिस्सेदारी 31.7 प्रतिशत है। लेकिन जी-7 का व्यापार 30 फीसदी तक घट चुका है। इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि ब्रिक्स देश किस तरह से आगे बढ़ रहे हैं। साथ ही नए ब्रिक्स के नए विस्तार की ओर जाना भी काफी अहम है। क्योंकि यह विकासशील देशों का एक समूह है, इसके स्रोत और संसाधन भी इन देशों के मुताबिक हैं। इसलिए यह उनसे मेल खाता है और विकासशील देशों की ग्रोथ के लिए काम करता है। इसके साथ ही ब्रिक्स देशों का अपना बैंक, नव विकास बैंक भी है, जो कि बहुत अहम भूमिका निभा रहा है। खासकर विकासशील देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थिति सुधारने के लिए जो जरूरतें हैं, उसमें मदद दे रहा है। यह एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति है, जो सही दिशा में आगे बढ़ रही है। जैसा कि अनुमान है कि आने वाले समय में ब्रिक्स समूह देश ग्लोबल जीडीपी में 50 फीसदी का योगदान देंगे।
दक्षिण-दक्षिण सहयोग और वैश्विक प्रशासन में ब्रिक्स की भूमिका पर प्रसून कहते हैं कि यह विकासशील देशों द्वारा स्थापित किया गया है, जो उनके लिए ही काम कर रहा है। ऐसे में ये देश और समूह दक्षिण-दक्षिण के देशों की समस्याओं और चुनौतियों को अच्छी तरह समझते हैं। साथ ही किस तरह के संसाधन प्रदान कर उनकी सहायता की जाय, यह भी समझता है। इसका एक सफल उदाहरण ब्रिक्स बैंक रहा है। जो कि कई देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास संबंधी प्रोजेक्ट को फंड दे रहा है। इस तरह कहा जा सकता है कि यह एक बहुत अच्छी पहल है, बहुत समय पहले से विकासशील और दक्षिण-दक्षिण के देश इस तरह की कोशिश में लगे थे। क्योंकि अभी जो जियोपॉलिटिकल स्थिति है, उसमें ब्रिक्स व्यवस्था एक सकारात्मक व्यवस्था है, जो सिर्फ विकास पर बात करती है। कोरोना महामारी के बाद के दौर में विश्व समुदाय और विश्व शांति के लिए इस तरह के समूहों और संसाधनों की ज्यादा जरूरत महसूस की जा रही है।
ब्रिक्स व्यवस्था में चीन-भारत सहयोग की चर्चा में प्रसून शर्मा ने कहा कि ये दोनों देश विश्व की पाँच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं और ब्रिक्स के अहम सदस्य भी हैं। जाहिर है इनकी भूमिका न केवल सिर्फ ब्रिक्स समूह के लिए बल्कि समूची वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण रहेगी। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि ने चीन और भारत दोनों को ग्रोथ के मामले में अच्छी रेटिंग प्रदान की है। साथ ही दोनों के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर भी फोकस रहेगा, हालांकि ब्रिक्स एक बहुदेशीय मंच है। दोनों देश काफी सक्रिय हैं, भले ही नए देशों को शामिल करने की बात हो या ब्रिक्स बैंक को बढ़ावा देना हो। वैश्विक अर्थव्यवस्था और जियोपॉलिटिक स्थिति दोनों में चीन और भारत अहम योगदान देंगे।
(प्रस्तुति अनिल पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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