‘तुम ऊपर मत आना, मैं संभाल लूंगा’…शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ने बचाई साथियों की जान, आतंकियों से अकेले भिड़े

नेशनल डेस्क: मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, जिन्होंने 26 नवंबर, 2008 को मुंबई आतंकवादी हमले के दौरान सर्वोच्च बलिदान दिया था और आज भी जब लोग उनकी शहादत को याद करते हैं तो सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है। उनकी शहादत के लिए मरणोप्रांत उनको अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।   17 दिसंबर 2008 को.

नेशनल डेस्क: मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, जिन्होंने 26 नवंबर, 2008 को मुंबई आतंकवादी हमले के दौरान सर्वोच्च बलिदान दिया था और आज भी जब लोग उनकी शहादत को याद करते हैं तो सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है। उनकी शहादत के लिए मरणोप्रांत उनको अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।

 

17 दिसंबर 2008 को घर आने वाले थे संदीप

संदीप ने नवंबर 2008 को फोन करके माता-पिता को बताया कि कर्नाटक में उनके एक दोस्त की शादी है इसलिए वह 17 दिसंबर 2008 में घर आएंगे। उनकी 30 दिसंबर 2008 को वापसी की टिकट भी कन्फर्म थी। घर वाले यह सुनकर काफी खुश हो गए क्योंकि काफी लंबे समय बाद संदीप घर आ रहे थे। लेकिन उनके घरवाले नहीं जानते थे कि उनका बेटा कभी घर लौटकर नहीं आएगा। 26 नवंबर 2008 में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने मुंबई में हमला कर दिया। आतंकी मुंबई की आइकॉनिक बिल्डिंग्स को आतंकवादी निशाना बना रहे थे। आतंकी ताज होटल में भी घुस गए थे. तभी मेजर संदीप को फोन किया गया कि उन्हें अपनी टीम के साथ फौरन मुंबई पहुंचना होगा। मेजर संदीप उन्नीकृष्णन को सबसे कठिन लड़ाइयों, विशेषकर मुंबई हमलों के दौरान ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडो में उनकी भूमिका के लिए याद किया जाता है।

टीम के साथ मुंबई पहुंचे संदीप

संदीप बिना देर किए अपनी टीम के साथ मुंबई पहुंचे। ताज होटल में कई विदेशी पर्यटक फंसे हुए थे। 28 नवंबर को मेजर संदीप रात करीब 1 बजे अपनी टीम सुनील जोधा, मनोज कुमार, बाबूलाल और किशोर कुमार के साथ ताज होटल की दूसरी मंजिल की तरफ बढ़ रहे थे। वह सीढ़िया चढ़ ही रहे थे कि अचानक अंधेरे में गोलीबारी हुई, पता चला कि आतंकवादी ऊपर से फायर कर रहे थे। तभी अचानक अंधेरे में कहीं से एक ग्रेनेड उड़ता हुआ आया, कालीन वाली सीढ़ी पर गिरा और फट गया। ऊपर से एके47 के चलने की आवाज आई. उसकी गोलियों ने सीढ़ियों को छेद दिया था. गोलियां दरवाजे के इर्द-गिर्द दीवारों को भेद गई थीं । तभी संदीप की टीम में उनके साथी सुनील जोधा को गोलियां और छर्रे लगे जिससे वह घायल हो गए। संदीप भागकर सुनील के पास आए, उनके शरीर से रिसता खून देख कर बाबूलाल से उन्होंने कहा, ”इसे फर्स्ट एड के लिए ले जाओ.” और ऐसा कहकर अचानक एक झटके में वे अकेले ऊपर पाम लाउंज तक पहुंच गए। उन्होंने अपने साथियों को कहा, ”ऊपर मत आता, इन सबको मैं संभाल लूंगा।’

 

अकेले आतंकियों से भिड़े संदीप

संदीप ने अपनी एमपी5 लहराते हुए एट्रियम की ओर गोलियों की बौछार कर दी। गोलियां दीवारों को भेद गईं। इसके बाद वे पाम लाउंज में खुलने वाले दूसरे दरवाजों की ओर जाने के लिए सीढ़ियों पर चढ़े, यह एक जोखिम भरा कदम था क्योंकि उन्हें कवर करने के लिए कोई नहीं था। वे इतनी सावधानी से चल रहे थे कि उनके जूतों की आवाज भी नहीं हो रही थी, उन्हें अपने सामने बिखरी हुई विशाल कुर्सियां और टेबल नजर आया। उन्होंने ग्रेनेड का पिन उखाड़ा और लाउंज में उछाल दिया। ग्रेनेड काफी आवाज के साथ फटा, जिससे खिड़कियां चकनाचूर हो गईं। संदीप इस विस्फोट के बीच अंदर घुस गए। फिर उन्होंने समुद्र की ओर खुलने वाली खिड़कियों की ओर गोलीबारी की, उनके सामने एक भूरे रंग की ग्रिल थी, जो किसी धातु के आवरण की तरह बॉलरूम को ढके हुए थी। उनके निशाने पर यही बॉलरूम था। गलियारे में काफी तेजी से आगे बढ़ते हुए उन्होंने एमपी5 अपने ठीक सामने ताने रखी। उनकी बाईं ओर छोटी-सी आंगननुमा जगह थी जिसमें दो सोफे और एक गोल आकार का ग्रेनाइट टेबलटॉप रखा हुआ था।

 

अचानक टेबल के नीचे से हमला हुआ और दो आवाजें तकरीबन एक-साथ सुनाई दीं. एक एके-47 की और दूसरी एमपी5 से गोलीबारी की। शुक्रवार 28 नवंबर की सुबह तीन बजे तक मेजर कांडवाल की टीम ने ताज टावर की सभी 21 मंजिलों को खाली करवा लिया था। कांडवाल ने टावर मुंबई पुलिस के कब्जे में सौंप दिया। चार घंटे बाद दोनों होटलों में सारे कमरों से संभावित बंधकों को निकाल लिया गया था, अब आतंकियों की तलाश का समय था. लेकिन मेजर उन्नीकृष्णन कहां थे? तभी कर्नल श्योराण ने संदीप को ढूंढना शुरू किया। उन्होंने सबसे पहले पहली मंजिल पर देखा जहां उनकी पहली मुठभेड़ आतंकियों से हुई थी। यह होटल के भीतर ले जाता था। संदीप उल्टी दिशा में आतंकियों की तलाश में गए थे।

 

सवेरे साढ़े छह बजे एक आवासीय भवन की छत पर तैनात जसरोटिया के रेडियो में अचानक हरकत हुई, ”सिएरा सिक्स, दिस इज सिएरा वन, कम टु ऑपरेशन सेंटर ओवर।” श्योराण ने टीम बनाई और मेजर संदीप को ढूंढना शुरू किया। जसरोटिया को दो हिट टीमें दी गईं और पहली मंजिल पर संदीप को तलाशने का काम दिया गया, उन्हें तलाशी किचन वाले इलाके से शुरू करनी थी, जहां एक नए आए अधिकारी मेजर जॉन तैनात थे। श्योराण के अधिकारी लगातार संदीप के मोबाइल पर डायल कर रहे थे लेकिन वह स्विच ऑफ था।

 

शहीद हो चुके थे मेजर संदीप उन्नीकृष्णन

करीब साढ़े नौ बजे मेजर कांडवाल और मेजर जसरोटिया ने मेजर संदीप के कदमों के निशान देखते हुए उस ओर चलना शुरू किया। वे एक जोड़ी की तरह आगे बढ़ते रहे। जसरोटिया ने अपनी एमपी5 सामने की ओर तान रखी थी। कांडवाल पीछे का हिस्सा कवर करते हुए अपनी एमपी5 ऊपर ताने हुए थे। अचानक फर्श पर एक काली आकृति पड़ी हुई दिखाई दी, वो मेजर संदीप थे, उसकी बाईं टांग दाईं के नीचे मुड़ी हुई थी। दायां बाजू फैला हुआ था और बायां छाती पर था। शरीर गोलियों से छलनी था। सारी गोलियां बाईं ओर से मारी गई थीं, जिस गोली से वह शहीद हुए थे, वह निचले जबड़े से घुसी और सिर को चीरती हुई ऊपर निकल गई थी। वॉकी-टॉकी सिर से दो फुट दूर बिल्कुल दुरुस्त पड़ा था और स्विच ऑफ था. उनके अंगूठे से एक ग्रेनेड की पिन की रिंग लटक रही थी।

मेजर कांडवाल और मेजर जसरोटिया को समझते देर नहीं लगी क यहां क्या हुआ होगा। आतंकवादी मूर्ति के पीछे टेबल और सोफे के नीचे छिपे थे। कॉरिडोर में आगे बढ़ते हुए मेजर को आतंकियों ने निशाना बनाया था। संदीप को एके-47 की गोलियां लगी थीं। वहां का जो मजर था उससे साफ पता चल रहा था कि संदीप ने आतंकियों का कड़ा मुकाबला किया और मंहतोड़ जवाब भी दिया। उन्होंने आतंकियों पर खूब गोलीबारी की थी जिसका पता इस बात से लगता है कि संदीप की एमपी5 की गोलियां दीवारों और लकड़ी की जाली में धंसी थीं। वहीं, एक आतंकी का खून में सना जूता छूट गया था। बॉलरूम की ओर बढ़ते हुए खून के निशान बता रहे थे कि संदीप ने भागते आतंकी को जख्मी कर डाला था।

 

मेजर संदीप उन्नीकृष्णन इस शहीद हुए NSG के पहले अफसर थे, मेजर उन्नीकृष्णन के आखिरी हमले की वजह से आतंकी ताज के उत्तरी हिस्से में रेस्त्रां की ओर जाने को मजबूर हुए थे, उससे आगे वे नहीं जा सकते थे। कर्नल श्योराण ने मेजर संदीप की शहादत को व्यर्त नहीं जाने दिया और जिन लोगों की जान बचाने के लिए वे शहीद हुए उनको कर्नल श्योराण ने सुरक्षित बचाया। मेजर संदीप के माता-पिता नहीं जानते थे कि उनका बेटा इस मिशन में शामिल था, जहां उनको बेटे की शहादत की खबर मिली तो सन्न रह गए। देश कभी भी 26/11 आतंकी हमले को नहीं भूल सकता न ही शहीदों को।

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