दादा हवा सिंह की विरासत को आगे बढ़ा रही है Boxer Nupur Sheeran

नई दिल्लीः मशहूर मुक्केबाजों के परिवार में जन्मी नूपुर श्योराण को शुरूआती वर्षों में मुक्केबाजी से खास लगाव नहीं था और वह इसके बजाय पिल्लों के साथ खेलना पसंद करती थी। लेकिन विश्वविद्यालय के एक टूर्नामेंट में मिली हार ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी क्योंकि वह आखिरकार उस खेल से अपना करियर.

नई दिल्लीः मशहूर मुक्केबाजों के परिवार में जन्मी नूपुर श्योराण को शुरूआती वर्षों में मुक्केबाजी से खास लगाव नहीं था और वह इसके बजाय पिल्लों के साथ खेलना पसंद करती थी। लेकिन विश्वविद्यालय के एक टूर्नामेंट में मिली हार ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी क्योंकि वह आखिरकार उस खेल से अपना करियर बनाना चाहती थी जिस पर कभी उसके महान दादा कप्तान हवा सिंह का दबदबा रहा था। स्वर्गीय हवा सिंह का 1960 से लेकर 1970 के दशक की शुरुआत तक एशिया में दबदबा था। नूपुर अब रिंग में उनकी विरासत को ही आगे बढ़ा रही है।

जब भी नूपुर रिंग में उतरती हैं तो उन पर उम्मीदों का बोझ होता है क्योंकि वह अपने परिवार में तीसरी पीढ़ी की मुक्केबाज है। उनके पिता संजय कुमार भी कई बार के राष्ट्रीय चैंपियन रह चुके हैं। यहां चल रही विश्व महिला मुक्केबाजी चैंपियनशिप में 81 किग्रा से अधिक भार वर्ग में भाग ले रही नूपुर ने कहा,‘‘दबाव तो साथ में ही चलता है।’’ खेल नूपुर के खून में भरा है क्योंकि उनकी मां मुकेश रानी एशियाई चैंपियनशिप पदक विजेता बास्केटबॉल खिलाड़ी हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि नूपुर का बचपन से ही खेलों की तरफ झुकाव रहा होगा।

वह अपने दो बार के एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता दादा की कहानियों को सुनकर बड़ी हुई, जिन्होंने 1961 और 1972 के बीच लगातार 11 राष्ट्रीय हैवीवेट खिताब जीते। हवा सिंह 1966 और 1970 में लगातार दो एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय मुक्केबाज थे। शर्मीले स्वभाव की नूपुर ने हालांकि स्वीकार किया कि वह अपने पिता की मुक्केबाजी अकादमी में केवल पिल्लों से खेलने के लिए जाती थी। उन्होंने कहा, कि ‘मेरे पिताजी की अकादमी है और वहां वह गरीब बच्चों को प्रशिक्षण देते है। मैं बचपन से इसे देख रही हूं। मैं पढ़ाई में अच्छी थी और अकादमी केवल पिल्लों से खेलने के लिए जाती थी।’’ नूपुर तब दो साल की थी जब उनके दादा का निधन हो गया था और उनके दिमाग में उनकी धुंधली यादें हैं।

नूपुर जब स्कूल में थी तो उन्होंने हरियाणा सब जूनियर राज्य टूर्नामेंट के रूप में अपना पहला टूर्नामेंट खेला था। उन्होंने कहा, कि ‘तब मैं दसवीं में पढ़ती थी जब मैंने अपना पहला टूर्नामेंट खेला था। मेरा पहला मुकाबला सब जूनियर राष्ट्रीय चैंपियन से था और मैंने उसे आसानी से हरा दिया था। तब मुझे लगा कि मुक्केबाजी तो बहुत आसान है।’’ इसके कुछ साल बाद रिंग में पहली हार मिलने के बाद उन्हें अहसास हुआ कि वह वास्तव में मुक्केबाज ही बनना चाहती हैं।

नूपुर ने कहा, कि ‘जब विश्वविद्यालय स्तर पर एक टूर्नामेंट में मुझे पहली हार मिली तो तब मुझे लगा कि मुझे वास्तव में मुक्केबाज बनना है। मैं अपने पिता के पास गई और मैंने उन्हें अपनी इच्छा बताई। अगले दो साल काफी मुश्किल भरे थे क्योंकि मैं काफी आलसी थी और मुझे अपने पिता की डांट खानी पड़ती थी।’’ इसके बाद नूपुर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनका अगला लक्ष्य विश्व चैम्पियनशिप में एक पदक है, जिसमें उन्होंने गयाना की एबियोला जैकमैन को 5-0 से हराकर अपने अभियान की शानदार शुरुआत की हैं।

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