जापान को “औकस” में शामिल करना निस्संदेह एक गलत निर्णय है

हाल के दिनों में अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने जापान को “औकस” में शामिल करने का ऐलान किया। इस खबर ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में बड़ी हलचल मचा दी है। इससे जाहिर है कि उक्त तीन देश न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा की उपेक्षा करते हैं, बल्कि वैश्विक शांति और स्थिरता को भी चुनौती पेश करते हैं।.

हाल के दिनों में अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने जापान को “औकस” में शामिल करने का ऐलान किया। इस खबर ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में बड़ी हलचल मचा दी है। इससे जाहिर है कि उक्त तीन देश न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा की उपेक्षा करते हैं, बल्कि वैश्विक शांति और स्थिरता को भी चुनौती पेश करते हैं। हालांकि जापान सरकार ने इसे “स्वीकार” करने की घोषणा की, फिर भी लोगों ने चिंता प्रकट की कि इस कदम से गठबंधनों में टकराव बढ़ सकता है, प्रमाणु प्रसार का खतरा बढ़ सकता है, जिससे एशिया प्रशांत क्षेत्र की शांति और स्थिरता प्रभावित हो सकती है।

“औकस” सितंबर 2021 में अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित एक सैन्य गठबंधन है। इसका मुख्य स्तंभ परमाणु पनडुब्बियों की तैनाती और अनुसंधान व विकास के साथ-साथ उभरती प्रौद्योगिकियों के संयुक्त विकास में निहित है। अब तीनों देश जापान को “औकस” में शामिल कर अपना प्रभाव और बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, इस फैसले के पीछे एक गहरा संकट है।

सबसे पहले, तकनीकी स्तर पर देखें, अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्र में थोड़ा-बहुत अंतर है, जबकि जापान में हाइपरसोनिक हथियार, क्वांटम टेक्नोलॉजी आदि क्षेत्र में महत्वपूर्ण श्रेष्ठताएं हैं। हालांकि, इस प्रकार की तकनीकी पूरकता से इसके पीछे का रणनीतिक उद्देश्य छिप नहीं सकता। “औकस” में जापान की भागीदारी निस्संदेह इसे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका का रणनीतिक जागीरदार बना देगी, जिससे क्षेत्रीय तनाव और बढ़ जाएगा।

दूसरा, “औकस” का आंतरिक भाग अखंड नहीं है। जब परमाणु पनडुब्बियों की बात आती है, तो ऑस्ट्रेलिया को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया ने मूल रूप से 2026 में अपनी छह मौजूदा पनडुब्बियों को सेवानिवृत्त करने की योजना बनाई थी। हालांकि “औकस” की स्थापना के बाद, ऑस्ट्रेलिया ने पाया कि वह 2040 से पहले अमेरिका और ब्रिटेन से नई पनडुब्बियां प्राप्त नहीं कर पाएगा, और उसे पनडुब्बियां न होने की शर्मनाक स्थिति का सामना करने की बहुत संभावना थी। 

संवेदनशील प्रौद्योगिकियों और बौद्धिक संपदा हस्तांतरण मुद्दों पर अमेरिका के निर्यात नियंत्रण ने बाद के सहयोग के लिए भी छिपे खतरे पैदा कर दिए हैं। इसके अलावा, ऑस्ट्रेलियाई लोगों ने “औकस” की उच्च लागत पर भी गहरा असंतोष व्यक्त किया है, जिसने निस्संदेह संगठन के आंतरिक संघर्षों को बढ़ा दिया है।

जापान के लिए, “औकस” में शामिल होना और भी खतरनाक निर्णय है। इससे न केवल यह अमेरिकी विदेशी रणनीति में एक मोहरे के रूप में सिमट जाएगा, बल्कि एशिया में भी अलग-थलग पड़ सकता है। यदि जापान अमेरिका और सभी पक्षों के बीच एक राजनयिक पुल की भूमिका निभाना चाहता है, तो इसे अनिवार्य रूप से गंभीर रूप से प्रतिबंधित किया जाएगा। साथ ही, पूर्वी देश जापान और अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे “एंग्लो-सैक्सन” देशों के बीच सांस्कृतिक मतभेद भी इसे भविष्य के सहयोग में परेशानी में डाल सकते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने भी “औकस” के विस्तार पर कड़ी चिंता व्यक्त की है। श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने इस फैसले को एक “रणनीतिक गलती” बताया जिसने एशिया को विरोधी खेमों में बांट दिया। इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों के नेताओं ने भी चिंता व्यक्त की है कि यह संगठन क्षेत्रीय स्थिरता को कमजोर करेगा।

जापान को “औकस” में शामिल होने के लिए निस्संदेह एक गलत निर्णय है। शीत युद्ध की मानसिकता से भरा यह सैन्य गठबंधन न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा हितों से मेल नहीं खाता है, बल्कि एशिया-प्रशांत एकीकरण प्रक्रिया के भी प्रतिकूल है। हमें संयुक्त रूप से सभी देशों से जीरो-सम गेम की मानसिकता को त्यागने, बातचीत और सहयोग के माध्यम से मतभेदों को हल करने और संयुक्त रूप से क्षेत्रीय शांति और स्थिरता की रक्षा करने का आह्वान करना चाहिए।

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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