गोरखपुरः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छ अभियान के बारे में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रासगिकता और बढ़ा दी है। गांधी जी की 150वीं जयन्ती पर स्वच्छ भारत के सपने को साकार करने का संकल्प अब लोगों में दिख रहा है। सरकारी कार्यालयों, स्वंयसेवी संगठनों ने अपने अपने क्षेत्रों में भी स्वच्छ रखने का बीड़ा उठाया है। आज गांधी जी द्वारा दिये गये अभियानों में एक अभियान स्वच्छता अभियान पूरे देश में हो रहा है। केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारियों और कर्मचारियों ने भी अब इसकी पहल करते हुए हांथों में झाडू लेकर लोगों को संदेश दिया कि अपने आस-पास भी सफायी सभी का व्यक्तिगत कर्तव्य है, लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया नारा तब तक सफल नहीं होगा जब तक देश का प्रत्येक नागरिक अपने हिस्से की सफाई कर्तव्य समझकर नहीं करेगा। स्वतंत्रता आन्दोलन के सूत्रधार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने पहली बार आठ फरवरी 1921 को पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर स्थित बाले मियां के मैदान में अपार जनसमूह को सम्बोधित करते हुए ब्रिटिश हुकूमत को देश से हटाने के लिए लोगों का आह्वान किया था कि वे सरकारी नौकरियों का त्याग कर आन्दोलन में शामिल हों।
राष्ट्रपिता के सम्पर्क में उत्तर प्रदेश का गोरखपुर शहर तो तभी आ गया था जब वह वर्ष 1914 में चम्पारण जा रहे थे। गोरखपुर में स्थित बाले मियां के मैदान में आठ फरवरी 1921 को एक लाख से अधिक लोग इकटठा थे जहां गांधी जी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में पहला भाषण दिया। उनका भाषण सुनकर सभी लोग उनके मूरीद हो गये। गांधी जी ने कहा था कि यदि विदेशी वस्त्र का वहिष्कार पूरा हो गया और लोगों ने चरखा से कातकर तैयार किये गये धागे का कपडा पहनना शुरु कर दिया तो अंग्रेजों को यह देश छोडकर जाने के लिए विवश होना पडेगा। हमें गुलामी की जंजीर तोडनी है क्योंकि यह उतना ही जरुरी है जितना सांस लेने के लिए हवा जरुरी है। महात्मा गांधी का उदभोदन का परिणाम दो रुप में सामने आया एक तो लोग स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े। नौकरी, कचहरी और स्कूल आदि छोडकर सभी गांधी जी के साथ हो लिए। नये सेवकों की भर्ती शुरु हो गयी और गांव-गांव पंचायत स्थापित हुयी।
पूर्वी उत्तर प्रदेश की जनता ने तन-मन-धन से गांधी जी को स्वीकार कर लिया। पूर्वांचल का गोरखपुर, खलीलाबाद, संतकबीर नगर, बस्ती और मगहर आदि क्षेत्रें में चरख चलने वालों की भीड बाढ आ गयी। गांधी जी 30 सितम्बर 1929 को पूर्वांचल का दौरा दूसरे चरण में शुरु किया। चार अक्टूबर 1929 को आजमगढ से चलकर उसी दिन नौ बजे गोरखपुर आ गये। यहां उन्होंने चार दिन तक प्रवास किया। सात अक्टूबर 1938 को उन्होंने गोरखपुर में मौन व्रत भी रखा और नौ अक्टूबर 1938 को बस्ती के लिए रवाना हो गये।